मध्य प्रदेश सामान्य ज्ञान (जनजातियॉ) विस्तार में
संपूर्ण ज्ञान जनजाति विस्तार में
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 (25) के अनुसार जनजाति से तात्पर्य उन जनजातीय समुदाय अथवा जनजातीय समुदायों के अनुसूया समूह से है जो संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजातियों के रूप में माने गए हैं इसी अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति के द्वारा आम सूचना जारी की जाती है संसद किसी भी जनजातीय समुदाय अथवा उसके आंसुओं को अनुसूचित जनजातियों की सूची से निकाल सकती है या उसमें जोड़ सकती है मध्य प्रदेश की प्रमुख आदिवासी जनजातियां और जनजातियां निम्न है
- गाेंड- प्रधान, अगरिया, ओझा, नगारची, साेलहास, कमार मध्य प्रदेश में कुल जनजाति जनसंख्या का 35% है
- भील- बरेला, भिलाला, पटेरिया, (37.7%)
- बैगा- बिझवार, धनोतिया, भराेतिया, नाहर, रेभैना, काढ, मैना
- काेरकू- माेवासीकमा, ववारी, बाेडाेया, नाहर नहाला
- भारिया- भूमिया, भूईहार, पंडाे
- काेल- राेहिया, राैठेल
- सहरिया- स्वयं को खुटिया पटेल कहते हैं
प्रदेश की अनुसूचित जातियां
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 में सूचीबद्ध जातियां अनुसूचित जातियां कहलाती है
- वर्तमान में मध्यप्रदेश में 47 से अधिक जातियां हैं
- चमार जाति राज्य की सबसे बड़ी अनुसूचित जाति है
- सर्वाधिक अनुसूचित जाति इंदौर जिले में है- 545239 (2011)
- न्यूनतम अनुसूचित जाति झाबुआ जिले में है-17427 (2011)
- सर्वाधिक अनुसूचित जाति जनसंख्या वाले 5 जिले- इंदौर ,उज्जैन, सागर, मुरैना, छतरपुर
- सर्वाधिक अनुसूचित जाति के प्रतिशत वाले 5 जिले
दतिया 25.5%
टीकमगढ़ 25.0%
शाजापुर 23.4%
छतरपुर 23.0%
- न्यूनतम अनुसूचित जाति प्रतिशत वाले 5 जिले
अलीराजपुर 3.7%
मंडला 4.6%
डिंडोरी 5.6%
बड़वानी 6.3%
गाेंड
प्रोटोआस्ट्रेालायड प्रजाति समूह से संबंधित गोंड जनजाति का निवास मुख्यता विंध्य और सतपुड़ा के पर्वतीय क्षेत्रों में है
*गोंड जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से भारत की सबसे बड़ी जनजाति है गाेंड शब्द की उत्पत्ति तेलुगु शब्द काेण्ड से हुई है जिसका अर्थ है पहाड़ पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करने के कारण इन्हें गॉड संज्ञा दी गई है
गोंड जनजाति की उपजातियां-
अगरिया, ओझा, नगारची, साेलहास, कमारकमार
- भौगोलिक वितरण- गोंड जनजाति के लोग प्रदेश के समस्त जिलों में पाए जाते हैं परंतु नर्मदा के दोनों और विंध्य तथा सतपुड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में इनकी बसाहट सघन है
- शारीरिक विशेषताएं- शारीरिक गठन संतुलित होता है त्वचा एवं बालों का रंग काला होता है तथा दाढ़ी मूछ में बालों की संख्या कम होती है इनकी नाक बड़ी एवं फैली हुई होती है
- सामाजिक विशेषताएं- गोंड जनजाति में संयुक्त परिवार के साथ ही एकल परिवार का भी प्रचलन है इनमें विवाह के कई तरीके प्रचलित है जिनमें विनिमय विवाह हरण विवाह विधवा विवाह प्रमुख है
- आर्थिक विशेषताएं- जीविकोपार्जन हेतु कृषि शिकार एवं वनोपज एकत्रण पर निर्भर है कुछ स्थाई कृषि या जून खेती भी करते हैं जो पर्यावरण को अत्यधिक हानि पहुंचाती है यह झोपड़ियों में रहते हैं तथा झाेपडी के निर्माण में मुख्यता घास फूस बांस एवं मिट्टी का प्रयोग करते हैं
- सांस्कृतिक विशेषताएं- गोंड लोग में विभिन्न अवसरों पर सांस्कृतिक आयोजनों के द्वारा मनोरंजन किया जाता है गोंड लोगों के विभिन्न प्रमुख नृत्य में Karma, सैला, भडाैनी, बिरहा, कहरवा, सजनी, सुआ, दीवानी है इनमें घोटुल प्रथा का ही प्रचलन है
प्रमुख देवता "बूढ़ादेव" "ठाकुर देव" एवं "दूल्हा देव" है एक सच्चा गाेंड साज का पत्ता हाथ में लेकर कभी झूठ नहीं बोलता क्योंकि गाेंडाे के प्रमुख देवता बूढ़ादेव साल वृक्ष पर रहते हैं ग्राम भूमि के देवता ठाकुर देव कहलाते हैं दूल्हा देव बीमारियों से रक्षा करते हैं गोंड जनजाति प्राकृतिक पूजन भी है "नाग एवं पीपल" के वृक्ष की पूजा करते हैं
गोंड जनजाति में "दूध लाैटावा" प्रचलित है अर्थात गाेंडाे में मामा एवं बुआ की लड़की से विवाह करना श्रेष्ठ माना जाता है
- अगरिया- लोहे का काम करने वाला वर्ग
- प्रधान- पुजारी का काम करने वाला
- कोइलाभुता- नाचने गाने वाले
- ओझा- पंडिताई तथा तांत्रिक क्रिया करने वाले
- साेलाहस- बढ़ईगिरी
धुरगोंड- यह गाेंडाे का साधारण वर्ग है
भील
मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है एवं मुख्य रूप से मालवा के पठार एवं निर्माण में पाई जाती है दिल शब्द की व्युत्पत्ति तमिल भाषा के शब्द विल्लुवर से हुई है जिसका अर्थ है धनुष क्योंकि भी लोग तीर कमान का प्रयोग करते हैं अतः ने भी लिखा गया है इस जनजाति भीली भाषा बोलती है जो राजस्थानी गुजराती तथा मराठी का मिश्रित रूप है
शारीरिक विशेषताएं- भील सामान्य ठिगने होते हैं इनकी त्वचा का रंग ताम्बई होता है तथा देखने में सुंदर प्रतीत होते हैं शरीर सुगठित एवं मजबूत होता है
सामाजिक विशेषताएं- भील जनजाति पितृसत्तात्मक है इनमें संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित है दिलों में नियमित विभाग अंदर विवरण विवाह आदि प्रचलन में है विवाह में कन्या मूल्य का प्रचलन है
आर्थिक विशेषताएं- भील प्रायः कृषक होते है कुछ भील लकड़हारे श्रमिकों का कार्य भी करते हैं आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण कुछ भी चोरी डकैती करके भी उदरपूर्ति करते हैं यह पहाड़ी भागाे के वनाे को काट कर जला कर खेती करते हैं उसे दाहिया कहा जाता है
सांस्कृतिक विशेषताएं- भील दशहरा दिवाली उत्साह से मनाते हैं होली के पूर्व 8 दिनों तक लगने वाला भगोरिया मेला प्रसिद्ध है भील जनजाति के दो भाग हैं
1. उजले भील
2. कालिया भील
उजला भील स्वयं को उच्च श्रेणी का मानते हैं इन्हें भिलाला भी कहा जाता है उसमें भी अपनी लड़की कालिया भील को नहीं देते हैं परंतु कालिया भील की लड़की से विवाह कर लेते हैं अगले भील अथवा भिलाला की उत्पत्ति का मुख्य कारण राजपूत राजाओं का बिल कन्याओं से विवाह अथवा व्यवहारिक संबंध स्थापित करना था
भील जनजाति गुदना - गुदवाने की विशेष रूप से शौकीन होती है भीलाें के मकानों को " कू" कहते हैं इनमें खिड़कियां नहीं होती हैं पहाड़ी बनो को जलाकर यह लोग कृषि करते हैं इनके द्वारा की गई कृषि "चिमाता" कहलाती है
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