Alphabet (वर्णमाला) सामान्य ज्ञान
वर्ण -हिंदी साहित्य की सबसे छोटी इकाई होती है जिससे मिलकर अक्षरों का निर्माण किया जाता है
वर्ण - अक्षर - शब्द - वाक्य - गद्य पद्य - काव्य - महाकाव्य - हिंदी साहित्य
हिंदी में वर्ण दो प्रकार के होते हैं
1)स्वर वर्ण
2)व्यजंन वर्ण
स्वर वर्ण - हिंदी के वर्ण जो स्वतंत्रता पूर्वक बोले जाते हैं उन्हें स्वर वर्ण कहा जाता है ( इस प्रकार के वर्णाे में संयुक्त होने का गुण नहीं पाया जाता )
उदा. अ................अः -स्वर वर्ण
व्यजंन वर्ण- हिंदी के वर्ण जो "स्वर की सहायता से" बोले जाते हैं उन्हें व्यंजन वर्ण कहा जाता है (इसमें संयुक्त होने का गुण पाया जाता है)
उदा.- क................ श्र -व्यजंन वर्ण
स्वराे का वर्गीकरण
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः
Note- लेखन के आधार पर स्वरों की संख्या 13 होती है
*उच्चारण के आधार
उच्चारण के आधार पर स्वरों की संख्या 10 होती है (जब हम उच्चारण करते हैं तो अं अः ऋ का उच्चारण नहीं होता)
*हिन्दी साहित्य मे
हिन्दी साहित्य मे स्वराे की सख्या 11बताई गयी है
{10 + ऋ }
उच्चारण के आधार पर वर्गीकरण-
१) अं अः - हिंदी में इन दोनों स्वराे को आयोग वाह स्वर कहा जाता है
अयोगवाह - जिन स्वरों को बोलने में सबसे ज्यादा समय लगता है उनको आयोग वाह स्वर कहते हैं
'अयाेगवाह मे अं काे अनुस्वर
जबकि अः काे विसर्ग कहा जाता है'
२)ऋ- हिन्दी मे इसे अर्धस्वर कहा गया जाता है
३)अ इ उ - हिंदी में इन्हे हृस्व स्वर कहा जाता है
(ऐसे स्वर्ग जिन्हें बोलने में कम समय लगता है)
Note- अपवाद की दृष्टि से ऋ को भी हृस्व स्वर में गिना जाता है
४)आ ई ऊ ए ऐ ओ औ- इन 7 स्वराे को दीर्घ स्वर कहा जाता है
(दीर्घ स्वरों से मतलब उन स्वरों से होता है जिन्हें बोलने पर हृस्व स्वर से ज्यादा समय एवं अयोगवाह से कम समय लगता है)
व्यजंनाे का वर्गीकरण
व्यजंन 2 प्रकार के होते हैं
1)स्पर्श व्यजंन
2)अस्पर्श व्यजंन
स्पर्श व्यजंन- अस्पर्श व्यजंन
क ख ग घ ड - 5 य र ल व - 4
च छ ज झ ञ - 5 श ष स ह- 4
ट ठ ड ढ ण - 5 क्ष त्र ज्ञ श्र- 4
त थ द ध न - 5 .......12
प फ ब भ म - 5
.... 25
स्पर्श व्यजंन- जो व्यंजन अपने वर्ण प्रमुख के आधार पर बोले जाते हैं उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है
स्पर्श व्यंजनों की संख्या 25
अस्पर्श व्यजंन- अस्पर्श व्यंजन का मतलब किसी भी वर्ग में ना आने वाले व्यंजन होते हैं
अस्पर्श व्यंजनों की संख्या 12
स्पर्श व्यंजनों का वर्गीकरण
1) उच्चारण के आधार पर-
क ख ग घ ड - इन व्यंजनों को कंठ व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
(गले का यूज सिर्फ बोलने में )
च छ ज झ ञ- इन व्यंजनों को तालु व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
(जीव ऊपर टच करती है)
ट ठ ड ढ ण- इन व्यंजनों को मूर्धा व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
(जीभ ऊपर मुड़कर टच करती है)
त थ द ध न- इन व्यंजनों को दंत व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
( जीभ दांतो को टच करती है )
प फ ब भ म- इन व्यंजनों को अोष्ठ व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
( दोनों ओष्ठ आपस में टच होते हैं )
ड ञ ण- हिंदी में इन्हें अनुपयोगी व्यंजन कहा जाता है जिसका कारण यह है कि यह कभी भी किसी शब्द के शुरू में प्रयोग नहीं किए जाते हैं
क ख ग ज फ- इन्हें आगत व्यंजन कहा जाता है अथवा इन्हें अरबी और फारसी के व्यंजन भी कहा जाता है
झ- इसे हिंदी का परिवर्तित व्यंजन कहा जाता है
ड ढ- इन्हें दो गुण व्यंजन कहा जाता है
Note- जब इन व्यंजनों से किसी शब्द की शुरुआत होती है तो यह बिना विन्दी के प्रयोग किए जाते हैं
लेकिन अगर यह शब्द के दूसरे एवं तीसरे क्रम में आएंगे तो हमेशा विन्दी के साथ अाते है
उदा.- डमरू - 1st बिना विन्दी के
पढ़ना- 2nd विन्दी के
ट ठ ड ढ ण- इन व्यंजनों का प्रयोग वीर रस में सर्वाधिक किया जाता है
क च ट त प- इन्हें हिंदी का प्रमुख व्यंजन कहा जाता है हिंदी में प्रमुख व्यंजनों की संख्या 5 होती है
अल्प प्राण व्यजंन- वर्ग का पहला तीसरा और पांचवा इंजन अल्पप्राण कहलाता है
(मुख से कम वह निकले)
उदा. क ग ड
महा प्राण व्यजंन- वर्ग का दूसरा एवं चाैथा व्यंजन महाप्राण व्यंजन कहलाते हैं
(मुख से ज्यादा हवा निकले)
उदा. ख घ
अस्पर्श व्यजंन
श ष स ह- इन चार व्यंजनों को ऊष्म व्यंजन का जाता है (स्वर ग्रंथियों का ज्यादा टकराना बोलने में मुख से गर्म हवा आती है)
क्ष त्र ज्ञ श्र - इन्हें संयुक्त व्यंजन कहा जाता है अर्थात यह दो व्यंजनों से मिलकर बने होते हैं
उदा. (क्ष- क्+ष) , (त्र- त्+र) , ( ज्ञ- ज्+ञ) ,
( श्र- श्+र)
Note- व्यंजनों के संयुक्त होने के कारण इन का प्रयोग उच्चारण में नहीं किया जाता
य र ल व- इन्हे अन्तःस्थ व्यजंन कहा जाता है
लेखन के आधार पर व्यंजनों की संख्या-39
उच्चारण के आधार पर व्यंजनों की संख्या-35
हिंदी साहित्य में व्यंजनों की संख्या-33
हिंदी में वर्णों की संख्या-52
वर्ण - अक्षर - शब्द - वाक्य - गद्य पद्य - काव्य - महाकाव्य - हिंदी साहित्य
हिंदी में वर्ण दो प्रकार के होते हैं
1)स्वर वर्ण
2)व्यजंन वर्ण
स्वर वर्ण - हिंदी के वर्ण जो स्वतंत्रता पूर्वक बोले जाते हैं उन्हें स्वर वर्ण कहा जाता है ( इस प्रकार के वर्णाे में संयुक्त होने का गुण नहीं पाया जाता )
उदा. अ................अः -स्वर वर्ण
व्यजंन वर्ण- हिंदी के वर्ण जो "स्वर की सहायता से" बोले जाते हैं उन्हें व्यंजन वर्ण कहा जाता है (इसमें संयुक्त होने का गुण पाया जाता है)
उदा.- क................ श्र -व्यजंन वर्ण
स्वराे का वर्गीकरण
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः
Note- लेखन के आधार पर स्वरों की संख्या 13 होती है
*उच्चारण के आधार
उच्चारण के आधार पर स्वरों की संख्या 10 होती है (जब हम उच्चारण करते हैं तो अं अः ऋ का उच्चारण नहीं होता)
*हिन्दी साहित्य मे
हिन्दी साहित्य मे स्वराे की सख्या 11बताई गयी है
{10 + ऋ }
उच्चारण के आधार पर वर्गीकरण-
१) अं अः - हिंदी में इन दोनों स्वराे को आयोग वाह स्वर कहा जाता है
अयोगवाह - जिन स्वरों को बोलने में सबसे ज्यादा समय लगता है उनको आयोग वाह स्वर कहते हैं
'अयाेगवाह मे अं काे अनुस्वर
जबकि अः काे विसर्ग कहा जाता है'
२)ऋ- हिन्दी मे इसे अर्धस्वर कहा गया जाता है
३)अ इ उ - हिंदी में इन्हे हृस्व स्वर कहा जाता है
(ऐसे स्वर्ग जिन्हें बोलने में कम समय लगता है)
Note- अपवाद की दृष्टि से ऋ को भी हृस्व स्वर में गिना जाता है
४)आ ई ऊ ए ऐ ओ औ- इन 7 स्वराे को दीर्घ स्वर कहा जाता है
(दीर्घ स्वरों से मतलब उन स्वरों से होता है जिन्हें बोलने पर हृस्व स्वर से ज्यादा समय एवं अयोगवाह से कम समय लगता है)
व्यजंनाे का वर्गीकरण
व्यजंन 2 प्रकार के होते हैं
1)स्पर्श व्यजंन
2)अस्पर्श व्यजंन
स्पर्श व्यजंन- अस्पर्श व्यजंन
क ख ग घ ड - 5 य र ल व - 4
च छ ज झ ञ - 5 श ष स ह- 4
ट ठ ड ढ ण - 5 क्ष त्र ज्ञ श्र- 4
त थ द ध न - 5 .......12
प फ ब भ म - 5
.... 25
स्पर्श व्यजंन- जो व्यंजन अपने वर्ण प्रमुख के आधार पर बोले जाते हैं उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है
स्पर्श व्यंजनों की संख्या 25
अस्पर्श व्यजंन- अस्पर्श व्यंजन का मतलब किसी भी वर्ग में ना आने वाले व्यंजन होते हैं
अस्पर्श व्यंजनों की संख्या 12
स्पर्श व्यंजनों का वर्गीकरण
1) उच्चारण के आधार पर-
क ख ग घ ड - इन व्यंजनों को कंठ व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
(गले का यूज सिर्फ बोलने में )
च छ ज झ ञ- इन व्यंजनों को तालु व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
(जीव ऊपर टच करती है)
ट ठ ड ढ ण- इन व्यंजनों को मूर्धा व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
(जीभ ऊपर मुड़कर टच करती है)
त थ द ध न- इन व्यंजनों को दंत व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
( जीभ दांतो को टच करती है )
प फ ब भ म- इन व्यंजनों को अोष्ठ व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 5 होती है
( दोनों ओष्ठ आपस में टच होते हैं )
ड ञ ण- हिंदी में इन्हें अनुपयोगी व्यंजन कहा जाता है जिसका कारण यह है कि यह कभी भी किसी शब्द के शुरू में प्रयोग नहीं किए जाते हैं
क ख ग ज फ- इन्हें आगत व्यंजन कहा जाता है अथवा इन्हें अरबी और फारसी के व्यंजन भी कहा जाता है
झ- इसे हिंदी का परिवर्तित व्यंजन कहा जाता है
ड ढ- इन्हें दो गुण व्यंजन कहा जाता है
Note- जब इन व्यंजनों से किसी शब्द की शुरुआत होती है तो यह बिना विन्दी के प्रयोग किए जाते हैं
लेकिन अगर यह शब्द के दूसरे एवं तीसरे क्रम में आएंगे तो हमेशा विन्दी के साथ अाते है
उदा.- डमरू - 1st बिना विन्दी के
पढ़ना- 2nd विन्दी के
ट ठ ड ढ ण- इन व्यंजनों का प्रयोग वीर रस में सर्वाधिक किया जाता है
क च ट त प- इन्हें हिंदी का प्रमुख व्यंजन कहा जाता है हिंदी में प्रमुख व्यंजनों की संख्या 5 होती है
अल्प प्राण व्यजंन- वर्ग का पहला तीसरा और पांचवा इंजन अल्पप्राण कहलाता है
(मुख से कम वह निकले)
उदा. क ग ड
महा प्राण व्यजंन- वर्ग का दूसरा एवं चाैथा व्यंजन महाप्राण व्यंजन कहलाते हैं
(मुख से ज्यादा हवा निकले)
उदा. ख घ
अस्पर्श व्यजंन
श ष स ह- इन चार व्यंजनों को ऊष्म व्यंजन का जाता है (स्वर ग्रंथियों का ज्यादा टकराना बोलने में मुख से गर्म हवा आती है)
क्ष त्र ज्ञ श्र - इन्हें संयुक्त व्यंजन कहा जाता है अर्थात यह दो व्यंजनों से मिलकर बने होते हैं
उदा. (क्ष- क्+ष) , (त्र- त्+र) , ( ज्ञ- ज्+ञ) ,
( श्र- श्+र)
Note- व्यंजनों के संयुक्त होने के कारण इन का प्रयोग उच्चारण में नहीं किया जाता
य र ल व- इन्हे अन्तःस्थ व्यजंन कहा जाता है
लेखन के आधार पर व्यंजनों की संख्या-39
उच्चारण के आधार पर व्यंजनों की संख्या-35
हिंदी साहित्य में व्यंजनों की संख्या-33
हिंदी में वर्णों की संख्या-52
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